यह सन् 2006 के आसपास की बात है जब पैसों के अभाव में श्री ओंकार सिंह, (अधिवक्ता) अपने बच्चों का दाखिला किसी अच्छे स्कूल में नहीं करा पाये और जिस स्कूल में दाखिला कराया, तब उस स्कूल ने कुछ महीने की फीस जमा न करा पाने पर उनके बच्चों को स्कूल से निकाल दिया। तब मजबूर होकर किसी अन्य स्कूल में दाखिला कराना पडा, वहां पर भी फीस अदा न करने पर बच्चांे को स्कूल से पुनः निकाल दिया गया। इस प्रकार उनके बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पांच भिन्न-भिन्न स्कूलों से पूरी हुई। तब उन्होंने कम आय वर्ग केे बच्चों को शिक्षा दिलाने के दर्द को महसूस किया कि पैसों के अभाव में न जाने कितने गरीब परिवार के बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते होंगे। गरीब बच्चों की शिक्षा में बाधा बनने वाले आर्थिक संकट को गंभीरता से समझा और शुरूआत में उन्होंने झोंपड-पट्टी वाले स्लम एरिया के बच्चों को निःशुल्क पढाना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे कुछ सहयोगियों की मदद से प्रशिक्षित शिक्षिकाओं तथा पढाने के स्थान का प्रबन्ध किया। इस तरह ’’भरतपुरिया शिक्षा समिति’’ के नाम से एक संस्था को विधिवत रूप से पंजीकृत किया गया जहां आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवारों के बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध किया जा सका। अनेक मित्रों तथा संस्थाओं से आग्रह किया गया कि कुछ बच्चों को स्पोन्सर्स कराया जाये। उनके अथक प्रयास से स्कूल में पढने वाले बच्चों के लिए यूनिफाॅर्म एवं पुस्तकों आदि का प्रबन्ध भी धीरे-धीरे होने लगा।